सहाबी-ए-रसूल हज़रत बाबा रतन साहूक बिन जन्दल رَضِىَ اللهُ تَعَالىٰ عَنْهُ से हज़रत सैयद बदीउद्दीन ज़िन्दाशाह मदार क़ुत्बुल मदार رَضِىَ اللهُ تَعَالىٰ عَنْهُ की मुलाक़ात

हज़रत सैयद बदीउद्दीन ज़िन्दाशाह मदार क़ुत्बुल मदार رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُ भटिण्डा में

        जब आप (मदारे पाक  رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُ) भटिण्डा में पहुंचे तो पता चला कि हज़रत बाबा रतन साहूक बिन जन्दल رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُपधारे हैं तो सरकार उनसे मिलने गए। बाबा रतन साहूक رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُके लिए इतिहासकारों ने लिखा है कि आप मोजिज़ा (शक़्कुल क़मर) चाँद के दो टुकड़े होने के समय ईमान लाये थे तथा “सहाबी-ए-रसूल” थे एवं कोई छः सौ (600) वर्ष कि आयु पायी।

किताब मदारे आज़म में लेखक हकिम फ़रीद अहमद नक्शबंदी मुजद्दीदी ने लिखा है कि बाबा रतन बिन साहूक बिन सिकंदर बाज़ कहते हैं रतन बिन नसर बिन कृपाल लम्बे समय तक छुपे रहे थे तथा छठी शताब्दी हिजरी में ज़ाहिर (प्रकट) हुए तथा कहते थे कि मैं हुज़ूर नबी-ए-करीम صَلَّىاللهتَعَالىٰعَلَيْهِوَالِهوَسَلَّمकी सेवा में रहा हूँ।

बाबा रतन साहूक के पुत्रों हज़रत महमूद तथा हज़रत अब्दुल्लाह ने उन से रिवायतें (अवतरण) की हैं।

साहबे इसाबा कहते हैं कि मैंने इतिहासकारों शमसुद्दीन मुहम्मद पुत्र इब्राहीम हुर्जमी की किताब में पढ़ा है। उन्होंने लिखा है कि मैंने नजीब अब्दुल वहाब पुत्र इस्माईल फ़ारसी सूफ़ी से मिस्र में 712 हिजरी में सुना कि शिराज में 675 हिजरी में एक बूढ़े व्यक्ति जिनका नाम महमूद था आये, जो कहते थे कि मेरे पिता बाबा रतन साहूक ने मोजिज़ा शक़्कुल क़मर (चाँद के दो टुकड़े होना) देखा था तथा इसी कारण से भारत से अरब की यात्रा कि तथा हुज़ूर मुहम्मद صَلَّىاللهتَعَالىٰعَلَيْهِوَالِهوَسَلَّمको इमली भेंट की थी। जिनको हुज़ूर صَلَّىاللهتَعَالىٰعَلَيْهِوَالِهوَسَلَّمने खाया और लम्बी आयु का वरदान भी दिया था। उस समय वह 100 वर्ष के थे। तत्पश्चात बाबा रतन भारत आ गए और 632 हिजरी में इस संसार को त्याग कर सदैव के लिए स्वर्ग को सिधार गए।

समीक्षा एवं उद्धरण : – तारीखे मदारे आलम के लेखक (सैयद क़ारी महज़र अली) ने अपने पिता बुज़ुर्ग हज़रत मौलाना क़ुत्बे आलम सैयद क़ल्बे अली से बाबा रतन के बारे में एक वाक़िया बहुतायत सूना जो कि किताब मदारे आज़म में लिखा है।

मदारे आज़म पेज 107 से 111 तक लिखा है – इमाम इब्ने हजर असक़लानी कहते हैं कि हमको अली पुत्र मुहम्मद पुत्र अबी मुहम्मद ने बयान किया वह उद्धरण करते एक हदिस बयान करते हैं कि जलालुद्दीन मुहम्मद सुलेमान से जो दमिश्क़ के मुंशी थे। उन्होंने कहा कि हमको क़ाज़ी शम्सुद्दीन मुहम्मद बिन अब्दुर्रहमान बिन सानेउल हनफ़ी ने कहा कि हमको क़ाज़ी मुईनुद्दीन अब्दुल मुहसिन बिन क़ाज़ी जलालुद्दीन अब्दुल्लाह बिन शाम 737 हिजरी में खबर दी कि हमको क़ाज़ी नूरुद्दीन ने बताया कि हमारा दादा हुसैन पुत्र मुहम्मद ने हदीस बयान की कहा कि मेरी आयु सत्तर वर्ष की थी। मैंने पिता और चाचा के साथ खुरासान से भारत व्यापार के संबध में यात्रा की। भारत के एक गाँव से गुज़र रहे थे कि कुछ लोगों ने बताया कि यहाँ हज़रत बाबा रतन रहते हैं। हम लोगों ने वहाँ एक विशालकाय वृक्ष देखा जिसके निचे बहुत लोग एकत्र थे। जब हम वहाँ पहुंचे तो उन लोगों ने हमारी आओ भगत की। हमने देखा कि वृक्ष में एक बड़ा सा थेला लटक रहा है। मैंने पूछा कि इस थेले में क्या है ? लोगों ने उत्तर दिया कि इसमें बाबा रतन है जिनको हुज़ूर नबी-ए-अक़रम صَلَّىاللهتَعَالىٰعَلَيْهِوَالِهوَسَلَّمने लम्बी आयु का छः बार वरदान दिया है हमने कहा कि इन्हें निचे उतारो ताकि हम इनका दर्शन करें। अब थेला निचे उतारा गया और उसका मुँह खोला गया तो उसमे रूई (कपास) धुनी हुई भरी थी। जिस के बिच में बाबा रतन थे। एक व्यक्ति ने बाबा रतन के कान में कहा कि दादा जान ये लोग खुरासान से पधारे है तथा आप से जानना चाहते हैं कि आप ने हुज़ूर صَلَّىاللهتَعَالىٰعَلَيْهِوَالِهوَسَلَّمको कब और कैसे देखा था। बाबा रतन ये सुनकर बोले कि मैं अपने पिता के साथ अरब व्यापार के लिए गया, जब हम लोग मक्का पहुंचे तो वर्षा प्रारंभ हो गयी। इतना पानी बरसा कि पानी तेज एवं अधिक बह रहा था। जल बहाव के कारण एक अति सुन्दर तथा तेजस्वी बालक खड़ा था जिसका ऊँट पानी के उस पार खड़ा था। और वह अपने पहुँचने के लिए जल बहाव में कमी आने की प्रतीक्षा कर रहा था। मैंने मानवता एवं दया भाव से उस बच्चे को किनारे तक पहुंचा दिया। उस बालक ने प्रेम पूर्व मेरी ओर देखते हुए अरबी भाषा में तीन बार “बारकल्लाहू फ़ी उम्रिका” कहा। हम लोग मक्का पहुंचे तथा अपने व्यापार में व्यस्त हो गए। फिर भारत लौट आये। इस घटना को बहुत समय हो गया तथा ध्यान से भी जाती रही। इस घटना के काफ़ी समयान्तराल के बाद ही हम लोग एक रात घर के आँगन में बैठे थे, चाँदनी राते थी। चाँद स्पष्ट एवं साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। अचानक ही चाँद के दो टुकड़े हो गए। यहाँ तक कि एक पूर्व में चला गया तथा दूसरा पश्चिम में चला गया। फिर दोनों टुकड़े वापस जा कर जुड़ गए। हम लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ तथा मैंने लोगों से ज्ञात करना शुरू कर दिया, यहाँ तक कि अरब से आने वाले व्यापारियों से ज्ञात हुआ कि अरब के शहर मक्का में हज़रत मुहम्मद नामक हाशमी वंश के व्यक्ति ने अपनी नुबुव्वत का एलान किया तथा यह उनका मोजिज़ा था। जो लोगों कि मांग पर आपने किया था। अब मुझे हज़रत मुहम्मद صَلَّىاللهتَعَالىٰعَلَيْهِوَالِهوَسَلَّمसे भेंट करने की लालसा एवं जीज्ञासा सताने लगी, यहाँ तक कि मैंने अपनी यात्रा को निश्चित कर मक्का के लिए प्रश्थान किया। मक्का पहुँचकर लोगों से आपके घर का पता ज्ञात किया तथा घर पहुँच गए। फिर आवाज दी, मुझे अन्दर आने की इजाज़त हुई। जब में अन्दर गया तो देखा कि व्यक्ति जिसका मुख सूर्य के समान प्रकाशित चन्द्र के समान शीतल-शीतल प्रकाश फैला रहा था बैठे हैं। मानवता तथा दया फूट पड़ती थी। कुछ लोग जो आपके साथी थे, से बहुत बहुत आदर एवं शिष्टभाव स्पष्ट झलक रहा था। तथा आपके सामने खजूरें रखी थीं। मैं इस सभा को देखकर भयभीत हो गया तथा आपसे दूर बैठना चाहता था किन्तु मुझे पास बैठने का निर्देश दिया। जब में आपके सम्मुख बैठ गया तो मुझे अपने हाथ से खाने को खजूरें देते जाते थे। फिर मुझ से फ़रमाया कि तुम मुझे पहचाने ? मैंने कहा कि नहीं। हुज़ूर صَلَّىاللهتَعَالىٰعَلَيْهِوَالِهوَسَلَّمने फ़रमाया कि जब मैं छोटा बच्चा था तो तुमने मेरे ऊँट तक मुझे पहुंचाया था। चूँकि आपकी दाढ़ी उग आई थी और चेहरा काफ़ी कुछ बदल चुका था। अतः वास्तव में मैं उन्हें पहचान न सका था, किन्तु अब में आप को खूब पहचान रहा था। पूरी घटना मेरे मस्तिष्क में घूम रही थी। अतः मैंने कहा कि हाँ, मैं आपको पहचान गया हूँ तब आपने मेरी ओर हाथ बढ़ा कर कहा कि कहो “अशहदु अन ला-इला-ह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन-न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहू” मैंने आपके आदेश का पालन किया तथा पढ़ लिया। फिर जब मैं चलने को हुआ तो आपने फिर तीन बार “बारकल्लाहू उम्रिका” कहा, फिर मैंने बिदा ली। अब मुझे हर दुआ के बदले सौ (100) वर्ष की आयु प्राप्त हुई। अब मेरी छः सौ वर्ष की आयु हो चुकी। इस गाँव में मेरी बहुतसी संतान है तथा मुझसे कुछ हदीसों का भी उद्धरण है।

हज़रत बाबा रतन رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُको हुज़ूर صَلَّىاللهتَعَالىٰعَلَيْهِوَالِهوَسَلَّمने “ज़ुबैर” नाम दिया तथा इनका मज़ार मैजारतन जो की भटिण्डा क्षेत्र में है  लोगों के लिए दया एवं मार्गदर्शन आदि का गढ़ बना हुआ है। जहाँ लोग आज भी लाभ प्राप्ति कर रहे हैं और भटिण्डा में ही हज़रत ज़िन्दाशाह मदार رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُका चिल्ला भी है। जो बाबा साहब से मदार साहब رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُمَاकी भेंट वार्ता का साक्षी है।

28 मई सन 2001 को मुंबई से प्रकाशित “इन्क़लाब पत्र” में मौलाना कौसर नियाज़ी ने अपने लेख में लिखा है कि हिन्दुस्तान में हज़रत बाबा रतन पुत्र साहूक को सहाबी होने का गौरव प्राप्त है। य‍‌‌धपि उन्होंने सहाबी होने पर शक प्रकट किया, किंतु लिखा कि आशिक़े रसूल के लिए यह बहुत है कि “रतन साहूक رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُمَا” को सहाबी माना जाता है।

पाठको, “सहाबी” को देखने वाला “ताबई” होता है और यदि “बाबा रतन” सहाबी है तो “हुज़ूर मदारे पाक رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُ” ताबाई है क्योंकि आप दोनों की भेंट इतिहासकारों ने एक राय से स्वीकारी है और जिस प्रकार “साहूक رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُ” को छः सौ वर्ष से अधिक आयु प्राप्ति हुई तब क्या आश्चर्य कि ज़िन्दाशाह मदार رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُ की आयु 596 हुई।

यूँ भी हज़रत आदम عَلَيْهِالسَّلَام 1000 वर्ष तथा हज़रत नूह عَلَيْهِالسَّلَام को 950 वर्ष प्राप्त हुए तथा हारिसा बिन अब्दुल क़लबी رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُपाँच सौ (500) की आयु को प्राप्त हुए। फिर क्या आश्चर्य कि जब हज़रत खिज्र पैग़म्बर عَلَيْهِالسَّلَامआज भी जीवित है तो क़ुत्बुल मदार ज़िन्दाशाह मदार رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُ की आयु पाँच सौ छेयानवे (596) वर्ष ही हुई।

[मक्का-मदीना-मकनपूर सवाने हयात हज़रत सैयद बदीउद्दीन ज़िन्दाशाह मदार क़ुत्बुल मदार رَضِىَاللهُتَعَالىٰعَنْهُ, पेज-125, 126,127.]

Ummat Ke Behtaeeen Logon Me Hazrat Sayyid Badee’-ud-Deen Zinda Shah Madar Qutb-ul-Madar RadiyAllahu Ta’ala Anhu

“Hazrat Imran Bin Husain RadiyAllahu Ta’ala Anhuma Riwayat Kartey Hain Ke Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Ney Farmaya :
Meri Behtareen Ummat Merey Zamaaney Ki Hey Phir Un Key Zamaaney Key Baad Key Log, Phir Un Key Zamaaney Key Baad Key Log (Hazrat Imran RadiyAllahu Ta’ala Anhu Farmatey Hain Ke Mujhey Yaad Nahin Ke Aap SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Ney Apney Zamaaney Key Baad Do² Zamaanon Ka Zikr Farmaya Ya Teen³ Zamaanon Ka) Phir Tumharey Baad Aisee Qaum Aayegi Ke Woh Gawaahi Denge Haala’n Ke Un Sey Gawaahi Talab Nahin Ki Jaayegi Who Khayaanat Karey Gey Aur Un Par Yaqeen Nahin Kiya Jaayega, Woh Nazarey Maaney Gey Mager Un Ko Poora Nahin Karey Gey Aur Un Mey Motaapa Zaahir Hoga.”
Muttafaque Alayh

[Bukhari As-Shahih, 03/1335, Raqam-3450, &
05/2362, Raqam-6064, &
06/2463, Raqam-6317,
Muslim As-Shahih, 04/1964, Raqam-5235,
Tirmidhi As-Sunan, 04/500, Raqam-2302, 2303, &
05/695, Raqam-3859,
Nasa’i As-Sunan, 07/17, Raqam-3809,
Ibn Majah As-Sunan, 02/791, Raqam-2362,
Bayhaqi As-Sunan-ul-Kubra, 10/74,
Bazzar Al-Musnad, 09/18, Raqam-3521,
Ahmad Bin Hanbal Al-Musnad, 04/427, Raqam-19835,
Tabarani Al-Mu’jam-ul-Kabir, 18/233, Raqam-581,
Tayalisi Al-Musnad, 01/113, Raqam-841,
Tahawi Sharh Ma’ani Al-Aathar, 04/151,
Mundhiri At-Targhib Wat-Tarhib, 04/05, Raqam-4546,
Al-Minhaj-us-Sawi, Safah-621, 622, Raqam-689.]

“Hazrat Abdullah Bin Mas’ood RadiyAllahu Ta’ala Anhu Riwayat Kartey Hain Ke Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Ney Farmaya :
Meri Ummat Key Behtareen Log Woh Hain Jo Merey Qareeb Hain, Phir Woh Log Hain Jo Un Key Qareeb Hain, Phir Woh Log Hain Jo Un Key Qareeb Hain.”
Muttafaque Alayh

[Bukhari As-Shahih, 02/938, Raqam-2509, &
03/1335, Raqam-3451, &
05/2362, Raqam-6065, &
06/2452, Raqam-2682,
Muslim As-Shahih, 04/1962, Raqam-2533,
Ibn Abi Shaybah Al-Musannaf, 06/404, Raqam-3240,
Aboo Ya’la Al-Musnad, 09/40, Raqam-5103,
Al-Minhaj-us-Sawi, Safah-622, 623, Raqam-690.]

“Hazrat Aaisha RadiyAllahu Ta’ala Anha Sey Riwayat Hey Ke Aik Shakhs Ney Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Sey Sawaal Kiya Ke (Ya RasoolAllah ﷺ) Kaun Sey Log Behtar Hain?
Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Ney Farmaya :
Sab Sey Behtar Log Us Zamaaney Key Hain Jis Zamaney Mey, Mein Maujood Hoo’n Us Key Baad Doosarey Zamaaney Key Log, Us Key Baad Teesrey Zamaney Key Log.”

[Muslim As-Shahih, 04/1965, Raqam-2536,
Ahmad Bin Hanbal Al-Musnad, 06/156, Raqam-25282,
Ibn Abi Shaybah Al-Musannaf, 06/404, Raqam-32409,
Ibn Abi Asim As-Sunnah, 02/629, Raqam-1475,
Al-Minhaj-us-Sawi, Safah-623, Raqam-691.]

“Hazrat Jaabir Bin Samurah RadiyAllahu Ta’ala Anhu Sey Riwayat Hey Unhoney Bayan Kiya Ki Hazrat Umar RadiyAllahu Ta’ala Anhu Ney Jaabiya Key Maqaam Par Hamey Khutba Diya, Phir Farmaya :
Hamarey Darmiyan Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Yoo’n Qiyam Farmatey They Jaisey Mey Tumharey Darmiyan Khara Hoo’n Aur Aap SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Ney Farmaya :
Merey Sahaba Key Baarey Mey Meri Hifaazat Karo (Ya’ni Un Ki Izzato Ehteraam Karo.)
(Aur Un Logon Ki Izzato Ehteraam Karo) Jo In Ke Baad Aaney Waaley Hain.
Phir (Un Logon Ki) Jo In Key Baad Aaney Waaley Hain.

Aur Hazrat Abdullah Bin Umar RadiyAllahu Ta’ala Anhuma Sey Marwi Aik Riwayat Mey Farmaya :
Merey Sahaba Sey Achchha Sulook Karna.”

[Ibn Majah As-Sunan, 02/791, Raqam-2363,
Ahmad Bin Hanbal Al-Musnad, 01/18, Raqam-144,
Hakim Al-Mustadrak, 01/198, 199, Raqam-388, 390,
Tabarani Al-Mu’jam-ul-Awsat, 06/306, Raqam-6483,
Bayhaqi As-Sunan-ul-Kubra, 07/91, Raqam-13299,
Lalka’i I’tiqad Ahl-us-Sunnah, 01/106, Raqam-155,
Husayni Al-Bayan Wat-Ta’rif, 02/219, Raqam-1546,
Al-Minhaj-us-Sawi, Safah-624, 625, Raqam-694.]

“Hazrat Jaabir RadiyAllahu Ta’ala Anhu Sey Riwayat Hey Ke Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Ney Farmaya :
Us Musalman Ko Jahannam Ki Aag Hargiz Nahin Chhuyegi Jis Ney Mujhey Deykha Ya Mujhey Deykhney Waaley (Ya’ni Merey Sahabi) Ko Deykha.”
رواه الترمذي والطبراني.
وقال الترمذي : هذا حديث حسن.

[Tirmidhi As-Sunan, 05/694, Raqam-3858,
Tabarani Al-Mu’jam-ul-Kabir, 17/357, Raqam-983, &
Al-Mu’jam-ul-Awsat, 01/308, Raqam-1036,
Ibn Abi Asim As-Sunnah, 02/630, Raqam-1484,
Daylami Musnad-ul-Firdaws, 05/116, Raqam-7659,
Haythami Majma-uz-Zawa’id, 10/21,
Al-Minhaj-us-Sawi, Safah-625, Raqam-695.]